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23 Jun 2021 · 1 min read

मनहरण घनाक्षरी…

पड़ी वक्त की लताड़, जिंदगी हुई उजाड़,
आस-प्यास सब मिटी, चाह दुखदायी है।

हाय ये कैसी बेबसी, माँ- बहन चल बसी,
रिश्तों को यूँ खोते जाना, घोर कष्टदायी है।

दोस्त भी कुछ खो दिए, दूर ही बैठे रो दिए,
दूरियाँ-मजबूरियाँ, क्या-क्या संग लायी है।

लपलपाती जीभ ले, अदृश्य कालदण्ड ले,
कालिका-सी किलकती, महामारी आयी है।

– ©डॉ.सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद ( उ.प्र.)

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