*मनः संवाद—-*
मनः संवाद—-
31/10/2024
मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl
जीवन है बहता पानी, रोक सका कोई नहीं, है अनंत उद्वेग।
बड़े बड़े चट्टानों को, सतत प्रवाहित की क्रिया, कर देता है रेग।।
जल से मत खिलवाड़ करो, सचमुच महा उदात्तता, ईश्वरीय प्रिय नेग।
जिस दिन तुम पहचानोगे, इसमें अनंत शक्ति है, छेड़ो मत यह तेग।।
जल ने ही है बचा रखा, धरती के अस्तित्व को, लग सकती थी आग।
इतना सामंजस्य भरा, पंचतत्व के मध्य में, कहते सबको प्राग।।
बढ़ा चढ़ा मन मनुष्य का, करता है नादानियाँ, आग लगाता बाग।
जिस दिन जल भी क्रोधित हो, आप्लावित कर दे सभी, छूटेंगे सब ताग।।
— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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