मधुर यादें
आज फिर याद आती है वे अमराइयाँ ।
वह सौंधी सौंधी खुश़बू गीली मिट्टी की ,छौनौं का वह करुण क्रंद्न और ललनाओं की लोरियाँ ।
धूल धूसरित शिशुओं की वह अठखेलियाँ ।
वे झौंके झूलों के और नवयौवना के विरह गीत।
ग्वालों का वह हरकारे देना और घंटियों का मधुर संगीत ।
करघों की ताल पर चर्खियों का वह युगल संगीत ।फिर हरवाहे का वह तन्मय मधुर गान ।बैलगाड़ियों के काफिले का वह समवेत् स्वर महान ।
पनघट पर गोरियों की वह किलकारियाँ ।
और मंदिर में दीपमालाओं की वह रोशनियाँ।
पोखरो में उच्छृंखल बालकों के फेंके पत्थरों से उठी तरंगें ।
नौजवानों का वह जोश और कुछ कर गुजरने की उमंगे ।
कहां खो गया है वह दिवास्वप्न और क्यों अधूरा सा है जीवन संगीत ।
इस दौर में मैं खुद को क्यों अजनबी सा पाता हूं शायद इस शहर की भीड़ में गुम सा हो गया हूं ।
इतने शोर में भी है क्यों है एकाकीपन ।
डरता हूं कहीं खुद को न भूल जाऊँ और यह अपनापन ।
इसलिए सोचता हूं लौट चलूँ फिर बीते हुए कल में ।
जो अभी तक बनी मीठी यादों सी डोल रही है मन में