मधुरिम सी हिन्दी
मधुरिम सी हिन्दी (मनहरण घनाक्षरी)
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8887….पदान्त गुरु
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अंग्रेजी की सहचरी,रही मातृभाषा हिन्दी,
दबी हुई है बोझ मेंं,माँ बोली मेरी हिन्दी।
प्रचार प्रसार करो,मत धारो तुम चुप्पी,
विकास विस्तार करो, बन जाइए शिल्पी।
शब्दकोश अथाह सा,वैज्ञानिक भाषा हिंदी
हिंदुस्तान का श्रृँगार है, मिटने न दो बिंदी।
हिन्दी हिन्दी दिवस की,मत बनाइए रानी।
वार्षिकी होनी चाहिए,राष्ट्र की महारानी।
हिन्दी का सम्मान करो,उन्नति उत्थान करो,
जन जन की भाषा हैं, मत तौहीन करो।
बधाई संदेशों तक,सीमित न करो हिन्दी,
सूचना संप्रेषण हो , तर जाएगी हिन्दी।
शहदीली मीठी है, शीतल शालीन हिन्दी,
जुबां पर रस घोले, मधुरिम सी हिन्दी।
मनसीरत मनौती,उज्ज्वल शोभित हिन्दी,
जन मन बस जाए,संस्कृत सुता हिन्दी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)