मधुरिम पल.बीत गए
पंछी सभी हैं छूट गए
नीड़ सभी हैं टूट गए
कलरव था जो सुर में
मधुरिम पल बीत गए
घर अब मकान हो गए
रिश्ते सब फ़ना हो गए
मिलते थे जो शौक से
शौक उनके हैं मिट गए
जिंदगी में संगीत नहीं
मन का मनमीत नहीं
प्रेम प्यार की रीत नहीं
हसीन लम्हें सिमट गए
दिल में है मिठास नहीं
मिलने। की प्यास नहीं
मतलबी इस जहान में
माला मोती बिखर गए
मित्रता में हुआ खोट है
अपना ही मारता चोट है
निराश्राय हो गए हैं सभी
अवलंब भी हैं अरीत गए
बड़ो का घर में रौब नहीं
किसी का रहा जोर नहीं
संयुक्त कुटुंब हैं टूट गए
एकल कुटुंब हैं जीत गए
पंछी सभी हैं छूट गए
नीड़ सभी हैं टूट गए
कलरव था जो सुर में
मधुरिम पल बीत गए
सुखविंद्र सिंह मनसीरत