मधुमास
हरिगीतिका छंद
ये रात दुल्हन-सी सजी आया सुखद मधुमास रे।
मनमोहना पूरे करेंगे आज सबकी आस रे।
वसुधा सजी है सौम्य अनुपम सब सुखद अहसास रे।
सोलह कला से पूर्ण चंदा लग रहा है खास रे।
ये रात पूनम की सुहानी सज गया आकाश रे।
मुरली मनोहर राधिका के संग रचते रास रे।
ये रात दुल्हन-सी सजी आया सुखद मधुमास रे।
ये डोर बाँधे प्रीत की मादक भरे हर साँस रे।
सजते भ्रमर के ओठ पे वासंती सरस अनुप्रास रे।
नयना दिखे छवि श्याम की अंतस हुआ बृज वास रे
आज तीनों लोक की यमुना बुझाती प्यास रे।
ये रात दुल्हन-सी सजी आया सुखद मधुमास रे।
चंदा अमृत बरसा रहा मन में भरे उल्लास रे।
लक्ष्मी भ्रमण करने लगी स्वागत करें अरदास रे।
छत खीर रखना रात भर मन में लिए विश्वास रे।
ये रात दुल्हन-सी सजी आया सुखद मधुमास रे।
लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली