मदिरा गुणगान
जग में कैसा भी हो काम
अच्छा हो या बुरा काम
छोटा सा हो या बड़ा काम
मदिरा करे काम बिन दाम
जब कभी काम उलझ जाए
मदिरा झट कारज सुलझाए
देखने वाला देखता रह जाए
फिर वो मदिरा का गुण गाएँ
जब चहुंओर छाई शान्ति हो
ना आंदोलन ना ही क्रांति हो
अचानक दारू है रंग दिखाती
वहाँ पर छा जाती है अशान्ति
विवाह पार्टियों का होता दौर
दिल माँगता है थोड़ी सी ओर
अकस्मात मच जाता है शौर
मदिरा सेवन से नहीं होता बोर
जब दुख का दरिया आ जाए
मदिरा आँखों से आँसू बहाए
जब लाल परी है रंग दिखाए
गम कोसों दूर चला है जाए
कर्मचारी हो या हो अधिकारी
जब काम की होती महामारी
थकान से होते हाथपाँव भारी
मदिरा हल्का करती तन भारी
मदिरा पत्नी को नहीं है भाती
गुस्सा पति पर बहुत बरसाती
कभी कभी ऐसा रंग दिखाती
पत्नी पल में मायके पहुंचाती
मदिरा कहीं खुशियां बरसाती
कहीं झगड़े लड़ाइयां करवाती
कभी छोटा काम बड़ा बनाती
कभी बड़ा कार्य हल करवाती
कभी काम ऐसे है करव जाती
कुत्ते से शराबी मुख चटवाती
नाली-नालो की सैर करवाती
बेज्जती की हदें पार करवाती
मद्य बुरी नहीं रही कभी चीज
यदि पी जाए मय संग तमीज
दारू दवा का रूप बन जाती
यदि सीमा में कभी ली जाती
पीने वालों हो जाओ सचेत
मदिरा मिला देती है संग रेत
मर कर बन जाओगे भूत प्रेत
मदिरा त्यागो हो जाओ सचेत
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
मिलाते हैं नशे के टीके अनेक