मदिरा और मैं
खुद से हार कर,
एक जीत की तलाश में था मैं।
शायद उस सागर में,
मेरे लिए एक सहारा थी तुम।
नशे में ख़ुद को खो कर,
अपने अस्तित्व से जुदा हो चुका था मैं।
शायद उस बवंडर में,
मेरे लिए एक तिनका थी तुम।
हर संभव कोशिश कर,
डूब रहा था मैं।
शायद उस गहरे पानी में,
मेरे लिए सब कुछ थी तुम।
– सिद्धांत शर्मा