मदारी को नचाता हुआ बंदर देखा है
मैंने यहाँ इठलाता हुआ सिकंदर देखा है
मदारी को नचाता हुआ बंदर देखा है
सोचता है दिल कि मे बात करुँ सपनो की पर
मैने उपजाऊ जमी को होते हुए बंजर देखा है
यहाँ छोटी छोटी बातों की बन जाती है बड़ी बातें
मैंने लोगो के दिलो मे चुभता हुआ खंजर देखा है
ये तुमसे कैसेकहूं कि सबकुछ बदल गया “कृष्णा”
मैंने लोगो के घरो मे चलता हुआ मंजर देखा है
✍कृष्णकांत गुर्जर धनौरा