मदद का हाथ अगर तुम बढ़ा सको तो चलो
ग़ज़ल
मदद का हाथ अगर तुम बढ़ा सको तो चलो
किसी के होठों पे मुस्कान ला सको तो चलो
जला के पुतला निभानी नहीं है रस्म मुझे
अगर ग़ुरूर का रावन जला सको तो चलो
मुझे शरीक नहीं होना ग़म-गुसारों में
दिया उमीद का कोई जला सको तो चलो
न कोई साया-ए-दीवार है न कोई शजर
तुम आफ़ताब से आँखें मिला सको तो चलो
गिराने वाले बहुत लोग है वहां मौजूद
जो गिर गया है उसे तुम उठा सको तो चलो
‘अनीस ‘फूल बिछाने की मैं नहीं कहता
मगर हां! राह से काँटे हटा सको तो चलो
अनीस शाह ‘अनीस ‘