मत माँ के आंचल को बांटो
पहले बांट दिया धर्मों में,
अब बांटा है जाति में
मानवता का खून किया,
लात मार दी थाती में
काबा और कैलाश बटा
धरती और आकाश बटा
सरहद बांटी देशों की
तुमसे न संताप बटा
गाय बटी बकरी बटी
अब रंग भी तुमने बांट दिए
रहन-सहन बोली न छोड़ी
जीने के ढँग भी बांट दिए
तीज बटे त्यौहार बटे
रस्मो और रिवाज बटे
छद्म भेड़ियों की चालों से
जीने के अंदाज़ बटे
काट रहे हो अपनी मां को
क्यों छलनी सीना करते हो
डरा करो परवरदिगार से
जिसके बल जीते मरते हो
कब तक तुम विद्रोह करोगे
कब तक नफरत बांटोगे
अपने स्वार्थ की खातिर तुम
अपनी भारत मां काटोगे
अरे बांटना ही है तो
दीन दुःखी के दर्द को बांटो
बंद करो यह खून खराबा
मत माँ के आंचल को बांटो
यह भोली भाली जनता है
मत इस को गुमराह करो
सीधे साधे लोगों की
तुम भी अब परवाह करो
सीख धर्म की हम से लेलो
हम भी तो इंसान हैं
आपस में है भाई भाई
एक दूजे की जान हैं
न जैन पारसी सिक्ख ईसाई
ना हिंदू न मुसलमान हैं
हम सब भारत मां के बेटे
‘कल्प’ बस हम इंसान हैं
✍?अरविंद राजपूत ‘कल्प’