मत पूछो यार…
मत पूछो यार ये कि
किसी अजनबी की आदत कैसे होती है
तू आया है दिल की बस्ती से बता यार
ये मोहब्बत कैसे होती है…
पूरी रात निकल जाती है
किसी के आगे मिन्नत करते करते
तू सच बता ना यार कि
ये मन्नत पूरी करने वाली इबादत कैसे होती है….
सच में मसले हल ही नहीं होते
जो मसले उठ जाए इक बार
एक बार दूर होने के बाद
फिर किसी और की चाहत कैसे होती है….
वो जो मुसाफिर समझता था हमेशा
अजनबी राह का खुद को
उसे फिर अजनबी मोड़ पर
नई राह की आदत कैसे होती है….
वो हर दफा बुरा बना देते हैं
मुझे मेरी ही नजर में
गर में वाकई में बुरा हूं यार तो
मुझसे ही फिर राहत कैसे होती है…