मत पूछिए
मत पूछिए कि आजकल क्या क्या होता है
बन्दूक किसी की तो कंधा किसी का होता है
ज़रा बच के निकलना यहां की गलियों से
सामने से ही नहीं यहां छुप के भी वार होता है
जो पीटता ढिंढोरा सच्चाई का अक्सर
वही तो झूठों का सरदार होता है
तू क्यों है आखिर इस कदर गमगीन
यहां उगते सूरज को ही सलाम होता है
कुछ तो छोड़ दे उस के रहम पर तू
हर बात पर कहां अपना अख्तियार होता है