मत्तगयंद सवैया
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मत्तगयंद सवैया
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शारद माँ विनती सुनिये किसने फिर दीपक नेह बुझाया ।
फैल गया अब द्वेष लता वत सोच रहा किसकी यह माया ।।
होन लगे अब रोज फसाद नहीं सुख चैन छले डर छाया ।
कोर कृपा कर दो अपनी पुनि दूर भगे डर का यह साया ।।
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हे घनश्याम ! दुखी मन मोर नहीं अब नीर पिये यमुना का ।
शोर विहीन हुए तट दूभर जीवन जीव जिये यमुना का ।।
स्याह हुआ मषि-सा जल देख फटे उर कौन सिये यमुना का ।
कूल खिलें फिर फूल यहाँ हरि कष्ट पुनः हरिये यमुना का ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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