मत्तगयंद सवैया*मोर पखा अति भाल सजे*
२११×८ भगण किरीट सवैया
मोहि चिढावत बात बनावत,मोहन मातु रहे समुझावत।
गोद लियो नहिं मातु जनो हरि गोकुल ग्वाल रहे बतियावत।।
ग्वाल धमाल करें नित ही हर ओर यही बस शोर मचावत।
मोहन पूछ रहे खिसियाकर,मातु कहे सबु झूठ कहावत।।
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छंद – मत्तगयंद सवैया
विधान – 7(२११) भगण + गा गा =21+2 = 23 वर्ण.
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मत्तगयंद सवैया :-
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(१)
मोर पखा अति भाल सजे नित कानन कुंडल सीप सुघारी।
देखि रहे नभ से छवि मोहन की मनमोहक सी अति प्यारी।।
देखि नहीं कबहूं पहले यह मोहन की मनसी छवि न्यारी।।
सुंदर रास रचें बृज में चितचोर सखींन हुईं बलिहारी।।
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(२)
मोहन की छवि भाय रही अति गोकुल ग्वाल हुए बलिहारी।
सोहनि सूरत मोहनि मूरत मोहन की छवि है अति प्यारी।
लाल गुलाल फबे अति भाल कमाल लगें गिरि के गिरधारी।
खेलि रहे कहुं छेडि रहे बहु दीखत हैं वह खूब खिलारी ।।