मतदान
लो चल रहा है देश में नगर निकाय के चुनाव है।
न पार्टियों की कमी यहां न नेता का अभाव है।।
धरती है राम कृष्ण की शिव बुद्ध का प्रभाव है।
तुलसी कबीर सूर से परिचित यहां हर गांव है।।
मगर यहां जनमानस में मर्यादा नहीं बची है।
राजनीति के पाखंडों में पूरी पूरी रची बसी है।।
कैसी वैचारिक बारिश है,जो पिता पुत्र में भेद कर रही।
इसका क्या उद्देश्य भला है, जन-मत में है छेद कर रही।।
शस्त्र रुपया लेकर के तुम, सामाजिक रिश्ते काट रहे हो।
श्वान समझ रक्खे हो सबको, क्यों हड्डी बोटी बांट रहे हो।।
माना कुछ लोभी कामी वा भ्रष्टाचारी जय जयकार करेंगे।
ये चलते फिरते मुर्दों का झुंड है, तेरा सब बंटाधार करेंगे।।
शर्म बनाता जीवन सीढ़ी, कुछ शर्म करो सत्कर्म करो।
हर मन को मन से जोड़ो तुम, दान पुण्य और धर्म करो।।
अगर वीर हो जाओ एकदीन, तुम वसुधा पर भोग करोगे।
पर श्वान अगर समझोगे सबको, तो कुत्ते वाली मौत मरोगे।।