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20 Jan 2022 · 2 min read

मतदाता का सज-सँवर कर फोटो खिंचवाने का अधिकार (हास्य व्यंग्य)*

मतदाता का सज-सँवर कर फोटो खिंचवाने का अधिकार (हास्य व्यंग्य)
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मुसीबत मतदाता की है । सुबह-सुबह जाड़ों में बिस्तर पर लिहाफ में अच्छा-भला लेटा था, मगर दरवाजे की घंटी बजती है और बेचारे को आनन-फानन में दौड़कर कुंडी खोलना पड़ती है । दरवाजा खुला तो सामने नेता जी खड़े हैं । दोनों हाथ जोड़े हुए ,गले में फूलों की तीन मालाएं पहने हुए हैं । अगल-बगल दस-बारह लोग उस बेचारे मतदाता को ही निहारे जा रहे हैं । मतदाता शर्म से गड़ जाता है । अपना मुसा हुआ कुर्ता-पाजामा देखता है । ठंड में ठिठुर रहा है । सामने नेताजी प्रेस किए हुए कुर्ते-पाजामे और उसके ऊपर शाल – मफलर और जैकेट पहने हुए फोटो खिंचने की अदा में तत्पर हैं। साथ में तीन फोटोग्राफर चल रहे हैं । जैसे ही मतदाता से नेता जी ने हाथ मिलाया ,तुरंत कैमरे की कैद में दोनों महानुभाव हो गए । उसके उपरांत प्रायः नेताजी आगे बढ़ जाते हैं । दूसरे घर में भी जाना है ।
कई बार नेताजी की विशेष कृपा होती है। वह वोट मांगने के लिए घर के भीतर भी पधार जाते हैं । अब मतदाता के साथ-साथ पूरे परिवार की दुर्दशा होना तय है । फोटो खिंच रहे हैं । परिवार के लोग अपने आपको देखकर परेशानी में डूबे हुए हैं । सब के बाल बिखरे हैं । अगले दिन फोटो विश्व-भर में प्रसारित हो जाते हैं । मतदाता और उसका परिवार ऐसा लगता है ,जैसे कई महीने से बिना नहाए हुए हो । उम्मीदवार-नेता की तुलना में उनका स्वरूप और भी ढक जाता है । चमचे समझाते हैं ,देखो ! यह फोटो रिकॉर्ड में दसों साल तक रहेगा और इस बात को याद किया जाता रहेगा कि महान नेताजी वोट मांगने के लिए खुद चलकर तुम्हारे घर तक आए ! तुम से वोट मांगा ! यह तुम्हारा अहोभाग्य है !
अब समय आ गया है कि मतदाता इस बात पर विचार करे कि जब उसका फोटो वोट मांगते समय का खींचना है और अखिल भारतीय स्तर पर उसे प्रचारित और प्रसारित भी होना है तो इसमें उसकी अनुमति लेना अनिवार्य होना चाहिए। समय निश्चित हो ताकि जिस प्रकार नेताजी को सजने-संवरने का समय मिल रहा है ,उसी प्रकार मतदाता और उसके परिवार के सभी सदस्यों को बन-संवर कर बैठने का अवसर मिले ।
अगर यह नहीं होता है तो मेरी राय तो यह है कि जब दरवाजे की घंटी बजे और यह समझ लो कि वोट मांगने के लिए कोई आया है तब भले ही बीस मिनट इंतजार कराना पड़े ,लेकिन बिना नहाए -बाल काढ़े और बिना प्रेस किए हुए कपड़े पहने कुंडी मत खोलना ! आखिर फोटो की जितनी जरूरत उम्मीदवार को है ,उतनी ही मतदाता को भी है । दोनों को सजने – सँवरने का बराबर का अधिकार होना चाहिए । आखिर मतदाता का भी अपनी मर्जी से फोटो खिंचाने का कोई अधिकार तो बनता है !
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लेखक : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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