जस का तस / (नवगीत)
।। जस का तस ।।
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आप चले गए
गांँव छोड़कर
मझले कक्का,
गांँव अभी तक
जस का तस है ।
वही पुराने
किस्सा-गोई,
वही ताश औ’ चौपर,
वही बेर
बेरी के मीठे
वही नीम की कोंपर
रोज़ उखड़ते,
कटते जंगल
औ’ खेतों की
मिट्टी का भी
सूखा रस है ।
वही पुराने
नद्दी,नरवा
और सूखते डबरा,
गली-गली में
फिरते नाटे
करिया, भूरा, झबरा
रोज़ पहट से
आती भैंसें
भूखी-प्यासीं
गायों की
सूखी नस-नस है ।
वही पुरानी
ऊंँच-नीच
की तूंँ-तूंँ, मैं-मैं,
पंचायत होती
मुंह देखी लगी
रोज़ की चैं-चैं
रोज़ सबेरे
सागर जाती
वही पुरानी
चले खटारा,
बूढ़ी बस है ।
०००
– ईश्वर दयाल गोस्वामी
छिरारी (रहली), जिला-सागर, मध्यप्रदेश
मोबाइल – 8463884927