मदिरा मजबूरी या जरूरी
कभी न देखी , सुनी कभी न , ऐसी विपदा भारी //
युक्ति और तदबीर निकाली जितनी भी थी सारी //
रखना है सबको सुरक्षित और सबको समझाना //
भरना भी जरूरी है जो खाली हुआ खजाना //
सरकारें तुरंत एक हुई मिला फिर नया बहाना //
चालीस दिनों से बंद पड़ा था वीराना – मैखाना //
खोल दिया उन सबकी खातिर जो है उन्हें पसंद //
एक झटके में टूट गया जो था अब तक बंद //
करोड़ों की बिक्री हुई और प्रसन्न हुआ प्रशासन //
चाहे न हो सामाजिक दूरी टूटे चाहे अनुशासन //
धर्म , नीति , सिद्धांत , सुचिता धरे रह गए सारे //
अर्थ नीति की विवशता ने जब अपने पैर पसारे //
जिस जनता के लिए ही चला करता है प्रशासन //
जनता का जनता के द्वारा जनता का है शासन //
जनता का ही राज है तो जनता को दांव लगाएं //
जिसने सुविधा ली है अब उससे ही अर्थ कमाएं //
अब चाहे जो भी हो इस मजबूरी का परिणाम //
खुशी -खुशी मैकश भी देता मदिरा के ऊंचे दाम //
मजे की मजबूरी है और मदिरा भी जब जरूरी है //
इतना ध्यान भी देना कि रखना सामाजिक दूरी है //
पीने -पिलाने वाले खुश हैं किसको क्या समझाएं //
अब तो इस विपदा भारी से प्रभु ही पार लगाएं ।।
अशोक सोनी
भिलाई ।