मज़दूर दिवस विशेष
शमशान के पीछे की भूमि सूनी पड़ी थी
लेकिन अब वहां चहल पहल हो रही थी
शायद एक नया निर्माण होनें को था इसीलिए
मजदूरों की झोपड़ियां किनारे पर बनने लगीं थी
पानी के टैंकर और टीन वाले छत
ऐसी ढ़ेरों झोपड़ियां तैयार हुईं तुरंत फुरंत
खाली पड़ी विशाल बंजर जमीन से
पेड़ों और मलबों को साफ़ किया गया
मजदूरों की यही कहानी होती है
एक नया शहर एक नया विकास
इनका विकास हो या न हो दाल रोटी के लिए
बीबी बच्चों सहित शहर दर शहर भटकते हैं
तब कहीं जाके ए लोग दो जून का भोजन करते हैं
छोटे छोटे से मासूम बच्चे भी इनके साथ होते हैं
माता भी मजदूरी करती हैं,
बचा हुआ समय बच्चों को भोजन भी देती हैं
आज़ इस ज़मीन पर नया निर्माण हो रहा है
कल मॉल बनेगा या अस्पताल का निर्माण होगा
क्या पता क्या होगा लेकिन हो तो रहा है
एक नए विकास की नींव है यहां जो धीरे धीरे पड़ रही है
कल जब मॉल बनेगा तो नौकरियां भी पैदा होंगी
तब सात से आठ हज़ार वेतन पर बीए, बीकॉम ,एम ए वालों को रक्खा जाएगा
काम का समय निश्चित नहीं किया जाएगा
बारह से पंद्रह पन्द्रह घंटे खुला मजदूरी कराया जाएगा
यहां होते शोषण को देख कोई रोकने नहीं आएगा
जितना चाहे ख़ून पिए इन जैसे मजदूरों के
हर कोई व्यापार नहीं कर सकता है
हर कोई नौकरशाह नहीं बन सकता है
लेकिन मेहनत मजदूरी से मॉल्स और होटलों का
मजदूर ज़रूर बन सकता है
आज़ यहां जो भी निर्माण हो रहा है
कल की आधारशिला है
आज़ जो निर्माण हो रहा है
कल के भविष्य को एक रोज़गार मिलेगा
लेकिन क्या केवल यही वो मज़दूर हैं
आज़ तो हर कोई मजबूर हैं मज़दूर बनने को विवश हैं
नौकरी है लेकिन वेतन कम है महंगाई अधिक है,
पैसा बचता ही नहीं है, लोन का बोझ भी अधिक है
सैलरी का इंतज़ार करते हैं महीने में
एक दिन सैलरी मिलती है वो भी एक दिन में गायब हो जाती है
मज़दूर भले ही कम नहीं हो सकते हैं लेकिन
उनका जीवन बेहतर हो सके इतना प्रयत्न कर सकते हैं
इसीलिए मजदूर दिवस एक मई को मनाते हैं
मजदूरों की याद में, क्योंकि मज़दूर भी इन्सान होते हैं
_ सोनम पुनीत दुबे