मजहब
कोई मुझसे पूछे तेरा मजहब क्या है ?
मैं कहूं गर इंसानियत तो खता क्या है ?
मैं मंदिर भी जायूँ और मस्जिद में भी ,
गिरिजाघर और गुरुद्वारे में फर्क क्या है ?
खुदा ही भेस बदलकर बैठा सब जगह ,
ये सभी तो घर उसी के ,और घर क्या है ?
फूलों ने खुद को खुदा के नजर करना है,
कोई पूछता है की इनका मजहब क्या है ?
अब मस्जिद में चादर,मंदिर में ओढ़नी चढ़े,
मकसद उसे नवाजने के सिवा और क्या है ?
इबादत दिल से होनी चाहिए चाहे जैसे हो ,
मतलब उसे याद करने है और भला क्या है ?
ईद में मैं सेवियां खायूं और नवरात्रों में खीर ,
क्रिसमस में केक, गुरुपर्व में हलवा हर्ज़ क्या है ?
वतन में सभी बंधके रहे एकता की डोर में,
इससे जायदा मुहोब्बत की मिसाल क्या है ?
वैसे भी सारे मजहब खुदा ने तो नही बनाए ,
तुम तोड़ दो बीच की दीवार फिर बात क्या है !
अब मान भी जाओ सब उसी की औलादें है ,
रूह सबमें एक जैसी लहू के रंग में फर्क क्या है ?
“अनु ” की जिंदगी का एक ही ख्वाब है एकता,
खुदा के हुजूर में की गई इससे बड़ी दुआ क्या है ?