मजलूमों की,कबर
जिन्हें मुफ़लिसी की, ना ज़रा सी खबर
चले मजलूमों की, आवाज़ बनने शहर
दो वक्त की रोटी, ढूंढ़ें यहाँ बशर
वायज़ खोलें है ; मज़हबों के घर
चमकाने अपना मुस्तकबिल औ घर
मुफ़लिसों से खुदवाई उनकी कबर
?
जिन्हें मुफ़लिसी की, ना ज़रा सी खबर
चले मजलूमों की, आवाज़ बनने शहर
दो वक्त की रोटी, ढूंढ़ें यहाँ बशर
वायज़ खोलें है ; मज़हबों के घर
चमकाने अपना मुस्तकबिल औ घर
मुफ़लिसों से खुदवाई उनकी कबर
?