मेरा वजूद
कितना और बदलूं खुद को
जीने के लिए ए जिंदगी
मुझमें थोड़ा सा मुझको भी
बाकी तो रहने दे
कितना और मुझको
समझाएगी ए जिंदगी
मुझमें थोड़ी सी नादानी
बाकी तो रहने दे
समझौते जिंदगी से करना
और कितने बाकी हैं
खुली हवा में मुझे भी
सांस तो लेने दे
परेशान हूं सुन सुन के
चर्चे तेरे आने के
दीदार अपने हुस्न के
मुझे भी तो करने दे
इन्जी संजय श्रीवास्तव
बालाघाट मध्यप्रदेश