“मजबूर”
“मजबूर”
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हिय ख्वाहिशें अनंत ही पलती हैं !
ख़्वाब भी तो हज़ारों में सजते है !
दिन-रात जो उड़ान हेतु विचरती है !
पर हक़ीक़त कुछ और ही होती है !!
कहाॅं पूरे हो पाते सारे ही सपने !
क्या करें, कितने मजबूर हैं हम !!
जीवन भर ही मेहनत हम करते हैं !
आराम के तो पल ही न निकलते हैं !
जीवन-चक्र में खूब चक्कर खाते हैं !
फिर भी हर सपने खरीद न पाते हैं !!
सारी चीज़ें हमारे वश में नहीं है न !
क्या करें,कितने मजबूर हो जाते हम!!
भले ही,अत्यंत गरीब ही ठहरे हम !
पर अरमानों के बहुत ही धनी हैं !
चाहतें तो हैं आकाश में उड़ने की….
पर संसाधनों की बहुत ही कमी है !!
परिस्थिति पर किसका ज़ोर चलता !
क्या करें, फिर कितने मजबूर हैं हम!!
अन्याय हम कतई बर्दाश्त नहीं करते !
सोच में सदैव ख़िलाफ़ ही इसके रहते !
पर एक इंसान के वश में जितना होता !
कदाचित् विरोध उतना ही कर सकते!!
एक इंसान की खुद की भी ज़िंदगी है !
क्या करें, कितने मजबूर हो जाते हम!!
परिवार की जरूरतें हैं अनेक तरह की !
मन करता अविलम्ब उसे पूरे करने की !
पर संसाधन तो सदा रहते हैं सीमित ही !
सारी जरूरतें तो सदैव पूरे कर पाते नहीं!!
वक्त के साथ सामंजस्य बिठाने में भलाई है !
आखिर समय के आगे मजबूर हो जाते हम!!
दुष्ट कोरोना ने कितनी ज़िंदगियाॅं लील लीं !
हमसब तो बस टकटकी ही लगाए बैठे रहे!
कितने घर – परिवार टूटकर बिखर से गए !
हम सब बस,हालचाल पूछकर ही रह गए!!
उस महामारी में कर ही क्या सकते थे हम !
परिस्थिति के आगे इतने मजबूर जो थे हम!!
हमारे इर्द – गिर्द ऐसी अनेक घटनाएं घटती !
जो हमारे स्वभाव के बिल्कुल ही उलट होती!
कुछ बातें तो बर्दाश्त के काबिल ही न होती !
पर हालात प्रतिकार की इजाजत नहीं देती !!
लगता है,ये हालात हमें निकम्मा बना देती !
हालात के आगे क्यों इतने मजबूर हैं हम ??
हमारा देश तेजी से विकास की राह पर है !
पर चौकन्ने ‘शत्रु देश’ की भी निगाह पर है !
कोई देश हमें ऑंख दिखा कर तो देख ले !
इतने ‘मजबूर’ नहीं कि ऑंख मिला न सकें!!
‘भारत’ के गौरवमयी इतिहास पे गर्व है हमें !
‘मजबूर’ होके भी ‘रिपु’ को हम मात दे सके!!
अजित कुमार “कर्ण” ✍️✍️
स्वरचित ( मौलिक )
किशनगंज ( बिहार )
दिनांक : 26 / 01 / 2022.
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