मजबूर मजदूर
मजबूर मजदूर
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मजदूर बन गया मदारी
मिली भूख और बीमारी
रोजी रोटी कमाने आया
रोटी नहीं मिली बीमारी
छत भी नहीं बना पाया
प्रवासी रहा सदा मदारी
यहाँ भी है भूखा प्यासा
वहाँ भी है भूख बीमारी
कोरोना क्या उसे मारेगा
मारे साहूकार व्यापारी
ना दर है ना ही ठिकाना
उसकी तो है सड़कबंदी
घून भान्ति पिसता रहता
चाहे निजी चाहे सरकारी
नीतियों में नहीं आ पाता
सरकार करती होशियारी
रईसों के घर सदा बसते
उजड़े मजदूर बन मदारी
बच्चे भूखमरी से हैं मरते
समझे नहीं कोई मजबूरी
सुखविंद्र समझ ना पाया
मजदूर की क्या मजबूरी
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)