मजदूर
संख्या मे हम भारी हैं,
समूहों में भी हम कम नहीं ,
हमारे ही शक्तिबल से अन्न उपजे,
हमारे संकट में कोई हमें न पूछे,
एक कहावत है,
टूटा हुआ ढोल कौन बजाता है ।
पाञ्चजन्य हम हैं,
हाथों में दश हम,
मनसुन बर्से,
खेतों में बाढ़
न हल, न बीज,
घर मे सभी बंधक,
भूख से बालगोपाल तडप रहा है ।
अन्न उबारते हम हैं,
भण्डार भी करते हम ,
सूखड होते ही ,
मजदूर को कौन पूछे,
पेट की गठरी कौन खोले,
मालिक के खलिहान में चूहे का ताण्डप,
बेचारे श्रमिक अन्न भोग से बञ्चित है ।
#दिनेश_यादव
काठमाडौं (नेपाल)