मजदूर
सुबह उठे जब घर पर
सिर्फ चाय ही सहारा था!
भरने पापी पेट को
सिर्फ काम ही सहारा था!
जैसे पहुंचे मजदूर चौक पर
मजदूरों ने अपना डेरा जमाया था!
काम की उम्मीद लगाए बैठे सब
पर लेने कोई नहीं आता था!
भूखा पेट तपती धूप बस
सिर्फ काम ही सहारा था!
जैसे तेसै निकला आधा दिन
आधे दिन का काम मिल पाया था!
उन्हीं पैसों से शाम को
बच्चों का पेट भर पाया था!
अगले दिन के लिए भी
सिर्फ सुबह की चाय और
काम ही सहारा था!!…………..
लेखक:- उमेश बैरवा