मजदूर
*******मजदूर********
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शोषित होता आया बेचारा
मजदूर कमाऊ वर्ग कमेरा
शोषण का होता है शिकार
शोषित बन करता रहे कार
दिनभर करता श्रम आपार
भूखमरी को होता शिकार
धर्म,जाति,रंग भेद झेलता
कुंठा कुंठित कर्म झेलता
मजदूर होता सदा मजबूर
व्यथित जीवन,कष्ट भरपूर
अपना उल्लू हैं सीधा करते
पीछे मुड़ ना सुध बुध लेते
समाज का है वह तबका
आर्थिक उन्नति रहे करता
समाज को उन्नत है करता
निज निर्धन जीवन कटता
बच्चों संग रहे कार्यशील
आर्थिक स्तर अगतिशील
किसी प्रति नहीं है रंजिश
सुख सुविधाओं से वंचित
दो टूक नहींं मिले निवाला
भूखे पेट सोता कामवाला
आर्थिक तंगी ,हालत मंदी
शारीरीक हालत नहीं चंगी
किस्मत से रहता है लड़ता
पग पग पर रहता है हरता
लोकतांत्रिक बड़ा हिस्सा
सुलझे ना श्रमिक किस्सा
विपक्ष हो या फिर सरकार
मजदूर हक करें दरकिनार
राजनीति का होते शिकार
कुपोषित रहते घर परिवार
घरेलू स्थिति है खस्ताहाल
जीवन जीता वह बदहाल
पूंजीपतियों का बोलबाला
मजदूर का ईश्वर रखवाला
सुपने आँखों में रहते तैरते
असलियत में मुंह फेर लेते
सहता बेईज्ज़ती तिरस्कार
आर्थिक उन्नति का किरदार
कोई नहीं सुनता है पुकार
मौन रहती चीख चीत्कार
सुखविन्द्र शब्द कहे सच्चे
कब आएंगे दिन वो अच्छे
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)