मजदूर दिवस
अभी मैं छोटा हूं, मुझे काम पर नहीं जाना है।
अभी तो मेरी उम्र है। स्कूल पढ़ने जाने की।
मै थक जाता हूं सारा दिन,
सर पर बोझ उठाकर।
मेरे भू के जिस्म में जान नहीं,
दिनभर करवाते काम हो।
मुझे तो अभी ममता के आंचल में पलना था,
मुझसे क्यों मजदूरी करवाते हो।
मुझे तो अभी पढ़ लिखकर कुछ बनना था,
पर इस मजदूरी ने तो मेरी आत्मविश्वास को झिंझोर दिया।
जिस उम्र में मुझे कलम पकड़ना था,
उस उम्र में दो वक्त की रोटी कमाने जा रहा हूं।
जिन हाथों में कलम पकड़ना था,
उन हाथों से ईटा गिरा रहा हूं।
जिन कंधों पर होना चाहिए किताबों का बोझ,
उस उम्र में हो रहा हूं मजदूरी का बॉस।
वह बचपन कहां खो गया,
मैं मासूम क्या बताऊं।
कौन है गुनहगार मेरे सपनों का,
जवाब मिलता है यह गरीबी।
मैं कुचला गया इस भेदभाव में,
इस समाज के गरीबी नामक घाव में।
सोच सोच कर अब थक गया हूं,
अब ऐसा नहीं निराशा है।
अब मैं नहीं आ रहा मेरे दोस्त,
यह देश हारा है गरीबी से।
मैं इस देश का भविष्य हूं,
और मेरा भविष्य ही अंधकार है।
अंजली तिवारी