मजदूर की बरसात
ओ , मेघा तू ठहर के बरस
मजा तुझको भी लेनी है
मजा मुझको भी लेनी है
कहीं धूप , कहीं छांव
कहीं तुझे बरसना
बस देख के बरस
सयाम से बरस ।
इंद्र का मिला हैं, फरमान तुझे
ना सुनेगा मेरा ना ही अपना ।
शबनम से परहेज मुझे
मेह सुनकर डर गया ।
रहता मैं खुले मेघ में
रात काटने से डर गया।
आठ पहर तप करूं
तब लू रोटी का आनंद।
कुंहासा को तो मेघ समझ जाता
सावन – भादों से हूं ,निशब्द ।
ओ मेघा तू देख के आना
संयम, अदब से बरसना
टपक -टपक कर बरसना
सागर में मिल जाना
अपने में ही रमजाना ।
गरज, अकड़ के बरस
जिद गुस्सा को धो डाल
खौफ किसका खाते हो
लहराते हरियाली से पूछ
जोर से गिर, सागर में मिल
भू से उठा था,भूमि में गिरेगा।
तुझको तो मौसिकी का इंतजार
मुझे तो है तेरे फटने का ।।
गौतम साव