मजदूर की जिंदगी
दिनभर जो करे श्रम
जो अपने ईश्वरीय देन
इन भुजाओं से कई के
बनाए है महल, बिल्डिंग
पर खुद वही झोपड़पट्टी में
रहकर बताते हर लम्हें को
मजदूरों की जिंदगी सतत
कष्टों, क्लेशों से भरी होती
दिनभर जी तोड़ करते श्रम
वो भी कुछ धनों कमाने हेतु
रात को लौटते स्वजन आवास
मजदूरों की हयात होगी कष्टपूर्ण।
मजदूरों की महिमा से ही
जो आज चमक रही शहरें
खुद को कभी कभी क्षुधालु
प्राक्चरण भी सोना पड़ जाता
वह अपने कमाए हुए धनों को
अपनी यामिनी को देते लाकर
और उनसे उनकी गृहिणी ही
स्वजन और पूर्ण परिवार की
अपेक्षा, गरजता को करती पूर्ण
मजदूर अपनी जरूरतों को छोड़
करते कुनबा की महत्ताओं को पूर्ण
मजदूरों की हयात होती कष्टसाध्य ।
मजदूरों को इस ईश्वरीय देन
इस अनोखी से जिंदगानी में
कितने कष्ट ! कितनी पीड़ाएं
कितने परेशानियों का उन्हें
करना पड़ता सामना यहां
सरकार भी इन्हें वेदनाएं से
निकालने हेतु इस भव से
कई योजनाओं को लागू कर
लाभ पहुंचाने का करते यत्न
लेकिन उन बेवश मजदूरों में
कईयों को न मिलता लाभ यहां
मजदूरों की हयात होती कष्टपूर्ण।
मजदूरों के घर में पैदा होना
अल्प संख्यक नर को मानें तो
पिछले उद्भव के कुकर्मों का
दिया हुआ है अभिशाप मेरा
हम इनसे चाहे निकालना तो
श्रम, उद्यम को हथियार बनाकर
इस अभिशाप से पा सकते मुक्ति
कई ऐसे मुक्ति वान मनुज हुए
जो स्वजन को हीरा की तरह
चमकाने हेतु इस भव, खल्क में
निज मेहनत से बदल सकते अतीत
मजदूरों की हयात होती कष्टसाध्य।
अमरेश कुमार वर्मा
जवाहर नवोदय विद्यालय बेगूसराय, बिहार