मजदूर का दर्द (कोरोना काल)– संवेदना गीत
सोचकर वो चला आस घर की लिए,
पथ बड़ा था कठिन पर ना भयभीत था।….
एक सफलता को मन में संझोए हुए,
मौत के पथ पे आगे वो बड़ता गया।
राह भी पर वो ऐसी असीमित हुई,
पथ को सीमित किया मौत के द्वार पर।
एक अकेला सा घर बस रहे याद में, सांस अंतिम इसी पर प्रतिक्षार्थ थी।।
सोचकर वो चला……
मौत हर पल यूं आगे बड़ी आ रही,
जूझ करके वो सैनिक सा लड़ता रहा।
मरते मरते भी दुविधा में था वो बड़ा,
जी के जा ना सका मरके पहुंचूंगा क्या?
याद अंतिम क्षणों में बहन आ रही, सपना शादी का उसकी दफन हो गया।।
मौत को अपने नजदीक पाकर भी वो, अपने सीने में यादें था घर की लिए।।
सोचकर को चला आस घर की लिए,
पथ बड़ा था कठिन, पर ना भयभीत था।।
लेखक/कवि
अभिषेक सोनी “अभिमुख”