*मछलने लगे*
वो तोड़ने को चाँद हैं,हंसके मन्छलने लगे ।
जब से दादी की गोद में हैं, सम्भलने लगे ।।
हौशला देखके मासूम का आँखें हंसती हैं
दूध के दांत भी अब् , उड़कर टहलने लगे।।
अब् बच्चे बच्चे नहीं, नौजवाँ हैं आजकल के
बूढी खोपड़ी में नब्ज है कहाँ ,टटोलने लगे।।
लौ छूने से डरते थे कभी,जलते हुए दियों की
अब् हैं बिजली के फूलों को ,पकड़ने लगे ।।
बर्फ पे कदम रखने से डरा था, आदमी कभी
पर बच्चे आग पे पैर धर, वेखौप चलने लगे।।
अचरज होता है ‘साहब’ उनके कारनामों का
यारों देखके हमारे दांत तो हैं अब,हिलने लगे।।