मच्छर दादा
मच्छर दादा गुनगुन गुनगुन, हमको गीत सुनाते हो।
सोने नहीं ज़रा देते हो,सच में बहुत सताते हो।
कभी लगाते हम गुड नाइट, या फिर कछुआ छाप कभी।
मगर डटे रहते हो फिर भी,नहीं भागते आप कभी।
पता नहीं किस-किस कोने में, जाकर के छुप जाते हो।
मच्छर दादा गुनगुन गुनगुन, हमको गीत सुनाते हो।
कभी लगानी पड़ जाती है, हम सबको मच्छरदानी
उसमें भी कैसे घुस जाते, होती हमको हैरानी
फिर तो सारी रात हमीं से, बस ताली बजवाते हो
मच्छर दादा गुनगुन गुनगुन हमको गीत सुनाते हो।
बिना दाँत के काट हमें ही, बड़े जोर से लेते हो
मलेरिया या डेंगू जैसी , बीमारी दे देते हो
खून चूसते रहते सबका, कब्ज़े में कब आते हो
मच्छर दादा गुनगुन गुनगुन, हमको गीत सुनाते हो।
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद