मचलती हुई यादें
मचलती हुई यादें
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लहरों की तरह यादें, मेरे मन में मचलती हैं।
नदियों की धारा बनकर, सागर में समा जाती हैं।।
बिछौना बनाकर यादें,तेरी राह देखते हैं
तुम ही तुम ख्यालों में हो,
इसलिए जीते हैं।
तेरी यादों के सहारे,इक आस लिए
बैठे हैं।
कभी तो मिलोगे मुझसे,
तेरा पथ निहारा करतें हैं।।
मेरे दिल के बगीचे में,जो यादों का
पिटारा है।
उन यादों को रोज हमने,
प्रेम की माला में पिरोया है।।
वो बीते हुए पल बचपन के,
कैसे भुला दूं।
वो यादों के रेत से घरौंदे,
कैसे ढहा दूं।।
तुमसे न कोई गिला,शिकवा न कोई
शिक़ायत मुझको।
तेरी हर यादों और बातों से,
मुहब्बत मुझको।।
सुषमा सिंह*उर्मि,,