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21 Apr 2022 · 1 min read

मगर वक्त ना मिला

सोचा कि मैं हाथ मिला लूँ बीते कल और अगले कल से,
अगले-पिछ्ले गहरे बरसो से और इस हमसफर पल-पल से।
मगर वक्त ना मिला।
दर्द से उस पीड़ा से जो कहीं मेरे किस्सों में शामिल है,
हाथ मिला लूँ उस मुस्कान से भी जो उस दर्द कि कातिल है।
मगर वक्त ना मिला।
उस मखमल रुपी शैय्या से, उन रास्ते के काँटों से।
उस भीषण तपती दुपहरी से, उन ठिठुरती सर्द रातों से। हाथ मिला लूँ।
मगर वक्त ना मिला।
हाँ सोचा कि मैं हाथ मिला लूँ टूटते – जुडते रिश्तों से,
और उस बुरे वक्त मे साथ निभाते चन्द अनजान फरिश्तों से।
मगर वक्त ना मिला।
सुकून भरी शीतल रात से तो उस जर्जर चुभती कड़वी बात से भी,
उस कड़वे लम्हें मे इस टूटे मन को सँभालते हाथ से भी। हाथ मिला लूँ।
सोचा, मैंने सोचा तो बहुत मगर वक्त ना मिला,
सोचा इनका हाल भी जानूं मगर वक्त ना मिला।
सोचा इस खोए आज मे बरसों पुरानी आत्मा को अपनालूं।
मगर वक्त ना मिला।

Language: Hindi
83 Views
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