मगरूर क्यों हैं
पता नहीं लोग इतने मगरूर क्यों है,
अपने ही अहम में चूर क्यों है।
ना ही रिश्तों की परवाह है,
ना कद्र है रिश्तों की।
स्वार्थ पर ही टिके हैं
आज कल के रिश्ते।
अपना काम निकल गया तो,
फिर चलते अपने रस्ते।
मुड़ कर भी नही देखते हाल,
क्या है अपने घर के।
अहंकार वो अग्नि है,
जिसमें जल जाते है सारे।
पता भी नही चलता कब,
राख बन जाते हैं प्यारे।
आज कल लोग अहंकार में,
इतने डूब रहे है।
अपने रिश्ते नाते को भी ,
भूल रहे है।
भूल कर अपने रिश्ते नाते,
लालच में आकर अपनों से भी
मुँह मोड़ रहे हैं।
एक टुकड़े जमीन को हड़पने
ताक पर रख अपने रिश्ते
सारे रिश्ते को भी तोड़ रहे हैं
पता नहीं लोग इतने मगरूर क्यों है,
अपने ही अहम में चूर क्यों है।
ममता रानी