मंहगाई
सरकारें जिस पर ध्यान न देती,ऐसी इक सच्चाई
हर घर की कमर तोड़ती देखो यह मंहगाई
आजादी के बाद आज तक जो सबसे ज्यादा बढ़ी है
वक्त के साथ-साथ नित नए शिखरों पर ही चढ़ी है
पंच वर्षीय योजनाएं हो या हो चुनावी नारा
लेकर स्थान सभी में लेकिन जस की तस ये खड़ी है
आम जन मानस को जिसने सबसे ज्यादा क्षति पहुंचाई
हर घर की कमर तोड़ती देखो यह मंहगाई।।
सन् 1930 मार्च का याद सभी को महीना
लकुटी और लंगोटी बांधे इक बूढ़ा चला तान कर सीना
तोड़ नमक कानून उसने इक नया इतिहास रचा था
परोक्ष रूप से एक तमाचा अंग्रेजी हुकूमत के जड़ा था
लगा नमक पर फिर से कर आका ने बात दोहराई है
बना रहे हो आत्मनिर्भर या हमें गुलामी याद दिलवाई है
हर घर की कमर तोड़ती देखो यह मंहगाई।।
माना देश हो विकसित इतना कि जग में इसका नाम हो
पर रखो ध्यान बस इतना कि जनता न परेशान हो
पेट भरा रहे तभी फैसले सही फिर होते हैं
किया पता क्या कभी देश में कितने खाली पेट सोते हैं
अमीर हो रहे अमीर मगर गरीबी न मिटती जाती है
सरकार ले टैक्स हमीं से फिर अमीरों के थाली सजाती है
5 रूपये की व्यंजन थाली नेताओं को मिल जाती है
आकर देखो जनता केवल खाली थाली बजाती है
मालूम तुम्हें क्या अभावों ने कितनी खुशियां है जलाई
हर घर की कमर तोड़ती देखो यह मंहगाई।।
दूध,गैस,पेट्रोल सभी के दाम बहुत ही महंगे हैं
दवा,इलाज और शिक्षा का क्या ही तो कहने है
किसान बेचारा ठगा खड़ा है माथा पकड़े खेतों में
जानवर सारी फसल चर गए बाबाजी है पहरों में
प्यारे भाइयों और बहनों के भाषण पर ताली फिर बजाई है
हर घर की कमर तोड़ती देखो यह मंहगाई।।
एक व्यक्ति,एक पार्टी इसकी केवल जिम्मेदार नहीं
ग़लती जनता की भी है सिर्फ गुनहगार सरकार नहीं
घर-घर की खेती को क्या हमने स्वयं नहीं भुलाया है
पूछो नई पीढ़ी से कब खेतों की मिट्टी को हाथ लगाया है
विकसित होने के चक्कर में हमने अपनी संस्कृति भी भुलाई
हर घर की कमर तोड़ती देखो यह मंहगाई।।
चलो माना हमने कल को भारत विकसित तो हो जाएगा
GDP आसमान छूएगी, तिरंगा घर-घर लहराएगा
अंतरिक्ष होगा फतेह,मैट्रो और सड़क-हाइवे भी रोज बनेंगे
वृक्ष काटकर,खेत पाटकर शहर भी नए सजेंगे
गिट्टी,बालू,चांद-सितारें,GDP आंकड़ों से भूख मिटेगी क्या
दाम अगर यूं रोज़ बढ़ेंगे तो फिर जिंदगी चलेगी क्या
पढा तो बचपन से है पर क्या,कभी आहार संतुलित थाली खाई
हर घर की कमर तोड़ती देखो यह मंहगाई।।