कविता : मंदिर की वो शंख ध्वनि
मंदिर की वो शंख ध्वनि, बने भक्ति का सार।
शीतल पावन मन करे, देती शाँति अपार।।
पुष्प सरिस कोमल लगे, लगती सर्द बयार।
झरने की कलकल लगे, पायल की झंकार।।
मंदिर की वो शंख ध्वनि, अनुपम है उपहार।
ओज जगाए सुरमयी, करती कभी सचेत।
जीवन के संग्राम में, मन करती है श्वेत।।
मंदिर की वो शंख ध्वनि, मीठा-सा उद्गार।।
शक्ति शील सौंदर्य का, देती है अनुमान।
निर्मल करती बुद्धि को, मधुर बनाती गान।।
मंदिर की वो शंख ध्वनि, देती नव संसार।
#आर. एस. ‘प्रीतम’
#स्वरचित रचना