मंदिरों की ऐसी आस्थाएँ?
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निचले पायदान पर धकेले गए लोग हैं हम।
अन्न हमारे सामने देवता प्रदत्त प्रसाद सा
होता है उपस्थित।
देवत्व के अधिकारियो,
अन्न के हर छठे भाग को देवता से
छीनते हो कर की संज्ञा में।
अस्वीकार है मठ और मंदिरों की ऐसी आस्थाएँ।
निचले पायदान पर धकेले गए लोग हैं हम।
शिक्षित होना हमारे समक्ष चुनौती है।
शिक्षा से गौरवान्वित गुरुजन
अर्थहीनों को अशिक्षित रखने का प्रण पाले।
अस्वीकार है ऐसे मंतव्यों की शृंखलाएँ।
निचले पायदान पर धकेले गए लोग हैं हम।
स्वास्थ्य हाँफता रहता सब दिन हमारा।
मंत्रों और टोने-टोटके से साधने का यत्न अनवरत,
दे जाता है मृत्यु अंतत: अकाल।
जीवन के अमृत-मंथनों में श्वेद की बूंदें हमारी कम नहीं।
जीवन का दंभ भरनेवाले विष्णु
सारा अमृत बाँट रहे क्यों संपन्न देवताओं को!
अस्वीकार है धन्वंतरियों की ये चेष्टाएँ।
निचले पायदान पर धकेले गए लोग हैं हम।
घर शीत,गर्मी,वर्षा,जाड़ा से बचाव का हिस्सा है हमारा।