मंदसौर की दुर्घटना पर मनोभाव
आततायियों के हाथों कुचली गई मासूम बाला
सुनकर दरिंदगी अन्तस् में भीधधकलउठी ज्वाला ।
वहशियों की हरकतों ने कन्या को कुचल डाला
ख़ता क्या थी बालिका की, हाय! ये क्या कर डाला ।
क्रोध की अग्नि जल रही अन्तस् में पीड़ा उठ रही
घायल हो रहा तन- मन मानवता चीत्कार कर रही ।
छोटी- सी नाज़ुक कली ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था?
कलुषित भावों पूर्ति हेतु क्यों उसको कुचल डाला ।
दुष्कर्म करते समय हाय! इनकी रूह भी नहीं काँपती
ईश्वर की कुदृष्टि भी इन पर क़हर नहीं बरपाती ।
इंसान शर्मसार हुआ. मानवता भी तार- तार हुई
ऐसा घोर कुकृत्य देख प्रकृति भी शर्मिंदा हुई ।
अबोध बच्ची पर न जाने क्यों ये जुर्म हुआ
न जाने क्यों आज इंसानों पर वहशीपन हावी हुआ ।
गगन भी सुन रो पड़ा धरा की रूह काँप उठी
झुलसी काया देख बच्ची काम. हर नारी ये बोल उठी ।
खुले आम घूम रहे हैं जो सिरफिरे व्यभिचारी
दुर्गा बन कर वध करें ख़त्म हो जाये विपदा सारी ।
नारी को ही रक्षा खातिर शस्त्र भी उठाना होगा
व्यभिचारों व नरपिशाचों का लहू अब बहाना होगा ।
अन्यथा नारी की कोख सूनी होने लग जायेगी
कोई भी माँ बेटी को धरा पर नहीं लाना चाहेगी
मंजु बंसल “ मुक्ता मधुश्री “
जोरहाट
( मौलिक व प्रकाशनार्थ )