मंत्रमुग्ध सुरबाला
******मंत्रमुग्ध सुरबाला******
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दिलनशीं,हमनशी,रूपवती हो तुम
यौवन से भरपूर मयनशी हो तुम
नभ मे बादलों में छिपी बदली हो
जैसे अभी भूमि पर बरसी हो तुम
विश्वामित्र की मेनका सरीखी हो
खुदा ने बख्शी है ईनायत हो तुम
इन्द्रलोक से धरा पर परी उतरी
रूप – लावण्य हसीन मूर्त हो तुम
देखते ही जिसे सुध-बुध खो देते
रूप-सौंदर्य जड़ी प्रतिमा हो तुम
मयख्यारी सी नशीली मनमोहिनी
मंत्रमुग्ध करती सुरबाला हो तुम
सुखविंद्र देखकर देखता रह गया
सम्मोहिनी सी रूपकटारी हो तुम
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)