सफ़र ठहरी नहीं अभी पड़ाव और है
मंजिल दूर है राही नेह ठहरे कहीं
दिशाओं की हर इल्म खूबसूरत लगे
पर अलहदा इस राह की स्नेही मंजर सखी
यह वश मे नहीं इसके अदद और है
मन के पृथक ठहराव को
स्थिर मंजिल की चाह है
न सफ़र ठहरी अभी पड़ाव और है
~ कुmari कोmal
मंजिल दूर है राही नेह ठहरे कहीं
दिशाओं की हर इल्म खूबसूरत लगे
पर अलहदा इस राह की स्नेही मंजर सखी
यह वश मे नहीं इसके अदद और है
मन के पृथक ठहराव को
स्थिर मंजिल की चाह है
न सफ़र ठहरी अभी पड़ाव और है
~ कुmari कोmal