मंजिल तक पहुंचाए रेल
मंजिल तक पहुंचाती रेल
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आओ मिलकर खेंले खेल
मिलजुल कर बनाएंगे रेल
हम में से एक बनेगा ईंजन
धू धू कर वो चलाएगा रेल
बाकी बनेंगें सवारी डिब्बे
डिब्बे जोड़कर चलेगी रेल
ईंजन लम्बी सीटी बजाए
स्टेशन पर रुक जाए रेल
पुनः फिर जो सीटी बजाए
स्टेशन से चल पड़ेगी रेल
कुछ यात्री नये बैठाएगी
कुछ को नीचे उतारे रेल
जब हों गर यात्रीगण भारी
हो जाए खूब धक्कमपेल
फेरीवाले भी रेल में होंगे
बेचेंगे सामान बीच में रेल
रामू,श्यामू सब चढ़ जाओ
कहना मत,छूट गई है रेल
चारों दिशाओं में है घुमाए
हर कोने पर चलती रेल
बिना टिकट कोई ना बैठे
तुम्हारी जेब कटाएगी रेल
जेबकतरों से बचके रहना
जेब कट जाएगी बीच रेल
देसी परदेसी लोग मिलेंगे
अपने जो दूरदराज हैं बैठे
मेल मिलाप करवाए रेल
जान पहचान बढाए रेल
खेल खेल में बता दिया है
सफर कैसे करवाती रेल
सुखविंद्र जो भी जन बैठा
मंजिल तक पहुंचाए रेल
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)