मंजिल छूते कदम
पंख मेरे छोटे हैं, इरादे तो ऊँचे हैं
उस पार बुलबुले हैं, इस पार सपने है।
कांच की दीवारें हैं, कैद में नजारे है
नन्हे से हौसले है, इन्द्र धनुषी इरादे हैं।
हजारों ख्वाहिशें हैं, लाखों उम्मीदें है
पल चाहे कितने हैं, मुट्ठी में समाये है।
लुप्त होते बुलबुले हैं, खूबसूरत नजारे है
जीवन भले छोटे हैं, जीने के ढंग अनोखे है।
हम न कभी हारे हैं, हार कर भी जीते हैं
यूँ तो कदम उठाये हैं, छूके मंजिल आये हैं।