मंजिल की चाह
ये मंजिल को चाह है सताती बहुत है
रुलाती बहुत है रुलाती बहुत है
मिलेगी न चाहत, मिलेगी नसीहत
करता है मेहनत तू करता जा बंदे
अभी तेरी मंजिल में दूरी बहुत है
न हारे न बैठे, ये मंजिल की चाह
सताती बहुत है।
तू चक्कर है, चक्कर में है तेरे जमाना
तुझे पाकर है सबको दिखाना
घुमा हु राह में चक्कर खाकर,
अब बोलो किसे न है पाना
ये मंजिल की चाह है सताती बहुत है।