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20 May 2020 · 1 min read

मंजिलें आसपास थी

मंजिलें आसपास थी
****************

मंजिलें आसपास थी
सफर में अटके रहे

महबूब तो पास था
पर हम ढूँढते रहे

कस्तूरी नाभि में थी
मृग वन भटकते रहे

ईश्वर मन अंदर है
जग में ढूँढते रहे

अपने ही दुश्मन थे
गैरों में ढूँढते रहे

दुनिया दो मुंही है
सर्प को कोसते रहे

हारे अपने आप से
दोष हम मंढते रहे

मौसम तो साफ था
मेघ तो बरसते रहे

सुखविंद्र मन में रहे
सांसों में बसते रहे
***************

सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

3 Likes · 1 Comment · 327 Views
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