:: मंज़िल ::
** मंजिल **
// दिनेश एल० “जैहिंद”
हर किसी की मंजिल जुदा-जुदा,
ऐसा क्यूँ होता है, बता ये खुदा ।।
हर कोई तय मंजिल नहीं पाता,
हर लक्ष्य का फूल नहीं खिलता ।।
सपनों में होती सबके तो मंजिल,
पर होती दूर और रहती धूमिल ।।
सबकी कोशिश है उनकी मंजिल,
पर आसां नहीं मिले हर मंजिल ।।
रख नजर मंजिल पे चलता जा,
छोड़ मायूसी और तू हँसता जा ।।
काम से नाम सच में मिलता है,
नाम से दिल का फूल खिलता है ।।
एक कारवां एक ही जीवन-रथ,
भटके हुए हैं सारे मुसाफिर पथ ।।
इन राहों में तू बदनामी से बच,
जीवन-पथ में गुमनामी से बच ।।
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दिनेश एल० “जैहिंद”
10. 11. 2017