मंचों से कविता
आजकल कई मंचों से कविता
गुलाम होकर पढ़ी जा रही है
फिर पर्दे के पीछे मित्रों
कविता सहमी सी रोती जा रही है
सोचो ऐसे कवि ने जब मंच से
किन शब्दों की कतार लगाई होगी
वाह वाह वाली कविता
पढ़ी और झूठी शान गिनाई होगी
तय करते हैं कहां जाना हैं
वहीं अनसुनी बातें गढ़ी जा रही हैं
आजकल कई मंचों से कविता
गुलाम होकर पढ़ी जा रही है
कोई नेता के पक्ष में पढ़ रहा
कोई कविता विरोध में पढ़ी जा रही है
सच तो हवाओं में उलझा रहा
किन्तु हुआ ही नहीं जो
अफवाह के सहारे सच कही जा रही है
आजकल मंचों से कविता
गुलाम होकर पढ़ी जा रही है
गुलाम होकर पढ़ी जा रही है!!
संतोष जोशी
गरुड़, जिला बागेश्वर
(उत्तराखंड)