मँहगाई
मँहगाई होती सदा, सभी दुखों की तार।
व्यथा बड़ी विचित्र हुई, झेल रहे सब मार।
झेल रहे सब मार, बनी नागपाश डसती।
उलझ खर्च में जान,भूमि दलदल में धसती।
जैसी झूठी शान, अनुपयोगी है काई।
संभव करना खर्च, ध्यान धरकर मँहगाई।
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मँहगाई होती सदा, सभी दुखों की तार।
व्यथा बड़ी विचित्र हुई, झेल रहे सब मार।
झेल रहे सब मार, बनी नागपाश डसती।
उलझ खर्च में जान,भूमि दलदल में धसती।
जैसी झूठी शान, अनुपयोगी है काई।
संभव करना खर्च, ध्यान धरकर मँहगाई।
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